ऐतिहासिक रूप से, महिलाओं ने किसी देश की वृद्धि और दीर्घकालिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है और उन्हें अक्सर एक विकसित अर्थव्यवस्था की रीढ़ माना जाता है.
भारत की अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि आधारित है और यहां महिलाएं खेतों में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर कार्य करती हैं. आर्थिक विकास और नई नौकरियों के उपलब्ध होने के कारण, ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों में पुरुषों का पलायन बढ़ा है, जो इस बात को इंगित करता है कि महिलाएं किसानों, उद्यमियों और श्रमिकों की भूमिका निभा रही हैं और कृषि क्षेत्र के विकास में प्रमुख योगदान दे रही हैं. यह उद्योग भारत की 60 प्रतिशत से अधिक आबादी को रोजगार देता है और देश की जीडीपी में लगभग 18 प्रतिशत का योगदान देता है. वास्तव में, ऑक्सफैम के शोध के अनुसार, भारत में आर्थिक रूप से सक्रिय सभी महिलाओं में लगभग 80 प्रतिशत कृषि कार्य में शामिल हैं, जिनमें से 48 प्रतिशत स्व-नियोजित किसान हैं और 33 प्रतिशत कृषि श्रमिक हैं।
हालांकि, कृषि और उससे जुड़े अन्य क्षेत्रों जैसे कि उपकरण एवं मशीनरी, उर्वरक, कीटनाशक, वित्त, मछली पालन और एफएमसीजी में मध्य और वरिष्ठ स्तरों पर, प्रबंधकीय पदों सहित सभी स्तरों पर महिलाओं की हिस्सेदारी तुलनात्मक रूप से बहुत कम है.
सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्भ
कृषि क्षेत्रों को अक्सर संरचनात्मक चुनौतियों और कठोर नियमों का सामना करना पड़ता है. यह विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में ज़्यादा देखने को मिलता है, जहां महिलाओं से पारंपरिक रूप से यह उम्मीद की जाती है कि वे घर संभालें, परिवार की देखभाल करें और उन पुरुष सदस्यों की सहायता करें, जो कमाते और घर चलाते हैं. यह इस तथ्य से भी स्पष्ट होता है कि पुरुष-प्रधान वाले अधिकांश समाज में महिलाओं की क्षमता को स्वीकार नहीं किया जाता, जिसके कारण वे इस उद्योग में पूरी क्षमता से कार्य नहीं कर पाती हैं.
इसके अलावा, संबंधित उद्योगों में भी, महिलाएं अक्सर अपने करियर के दौरान बाधाओं का सामना करती हैं, चाहे वह उनकी पसंद का करियर हो या कंपनी के प्रारूप के अनुसार जगह बनाने का प्रयास हो. बिक्री, अनुसंधान, दवा, विनिर्माण आदि जैसे कार्यों को पारंपरिक रूप से पुरुषों का कार्य माना जाता है. ग्रामीण बाज़ार के लिए काम करने वाले उद्योगों में यह स्थिति ज़्यादा गंभीर है, क्योंकि वे महिलाओं की रचनात्मकता और प्रतिभा का लाभ उठाने में कामयाब नहीं हुए हैं.
चुनौती का समाधान
कृषि एवं उससे जुड़े क्षेत्रों में कार्य करने वाली कंपनियों और संस्थाओं के लिए अब समय आ गया है कि वे संगठनात्मक मूल्यों एवं संस्कृति के अनुरूप प्रतिभा को तलाशने और विकसित करने की रणनीतिक पहलों को शुरू करें. इसे 'हार्डवेयर' और 'सॉफ्टवेयर' पहलों के संयोजन से प्राप्त किया जा सकता है. यहां, 'हार्डवेयर' का मतलब महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित विशेष नीतियों एवं ऐसी कार्य संस्कृति के निर्माण से है, जो प्रेरक, खुशहाल और सहायक होने के साथ ही ऐसी व्यवस्था प्रदान करती हो, जिसमें महिलाओं को बराबर के अवसर मिले. ‘यहां, 'सॉफ्टवेयर' का मतलब, विविधता और समावेशन को लेकर मानसिकता में लचीलापन और स्थायी परिवर्तन लाना है, जिसे समावेशिता पर प्रशिक्षण, जानबूझकर या बिना जानबूझकर किए गए पक्षपातों की पहचान करने के बाद, उन्हें समाप्त करके एवं इसी तरह के अन्य सुधारों के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है. इससे संगठन को करियर से जुड़े अवसरों में पहले से चली आ रही लैंगिक अपेक्षाओं से आगे बढ़ने और कार्य करने के लिए विविधतापूर्ण तथा समावेशी माहौल का निर्माण करने में मदद मिलेगी.
इसके अलावा, संगठनों को, समावेशी और विविधतापूर्ण कार्य वातावरण को मज़बूत बनाने और प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से, संगठन के भीतर सभी स्तरों पर प्रतिभाशाली महिला संसाधनों के निर्माण के लिए एक सुविचारित और रणनीतिक कार्यक्रम की आवश्यकता है, जिसमें महिलाओं को विभिन्न कार्यों से संबंधित भूमिका निभाने के लिए प्रशिक्षित और तैयार किया जाए, जिसमें वे भूमिकाएं भी शामिल हैं, जो अब तक पारंपरिक रूप से पुरुष-प्रधान मानी जाती थीं.
व्यवसायों को ऐसी पहल और दीर्घकालिक लक्ष्य निर्धारित करने की आवश्यकता है, जो कार्यस्थल में महिलाओं के विकास को प्रोत्साहित करें. इसके अतिरिक्त, कंपनियां समूह-केंद्रित विचार विमर्श (ओपन कम्युनिकेशन सिस्टम) जैसे खुले संवाद तंत्रों की स्थापना कर सकती हैं, जिनमें महिला कर्मचारी उनके सामने आने वाली चुनौतियों या समस्याओं पर खुलकर बात कर सकें. कृषि क्षेत्र की एक अग्रणी कंपनी के रूप में, एफएमसी ने इस मुद्दे पर कार्य करने के लिए कई रणनीतिक पहलों की शुरुआत की है. एफएमसी के वीमेन इनिशिएटिव नेटवर्क (WIN) और डाइवर्सिटी एंड इनक्लूजन (D&I) परिषद कुछ ऐसे कार्यक्रम हैं, जो लैंगिक संतुलन और नस्लीय समानता के प्रति कंपनी की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करते हैं. डाइवर्सिटी एंड इनक्लूजन (विविधता और समावेशन) से जुड़ी कई रणनीतियों के माध्यम से कंपनी वर्ष 2027 तक अपने वैश्विक कार्यबल में लिंग अनुपात को 50:50 करने की दिशा में कार्य कर रही है.
सरकार भी अपनी ओर से महिलाओं को सशक्त बनाने के अपने प्रयासों में कोई कसर नहीं छोड़ रही है. ज़मीनी स्तर पर, शिक्षा से जुड़ी योजनाएं और प्रशिक्षण तथा कौशल आधारित कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. नारी शक्ति पुरस्कार और सपोर्ट टू ट्रेनिंग एंड एम्प्लॉयमेंट प्रोग्राम फॉर वीमेन (एसटीईपी) इनके उदाहरण हैं. विशेष रूप से टियर 2 और टियर 3 शहरों में ऐसे स्नातक कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, जो खास तौर पर महिलाओं और कृषि समुदाय के लिए तैयार किए गए हैं. सरकार ने लिंग समानता या कार्यबल में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को समान बनाने के लिए, कॉर्पोरेट कार्यस्थल पद्धति को ध्यान में रखते हुए मापदंडों की स्थापना की है, जो श्रम बल में महिलाओं की भागीदारी से संबंधित सटीक आंकड़े प्रदान कर सकते हैं.
कृषि उद्योग में कार्य करने वाले संगठनों को महिलाओं की सफलता को स्वीकार करना चाहिए और उन्हें प्रेरित करना चाहिए, ताकि वे इस क्षेत्र में सफल होने की चाहत रखने वाली अन्य आकांक्षी महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत बन सकें. ऐसे कार्यक्रम, जिनमें सफल और प्रभावी महिलाएं बातचीत करें और अपने संघर्षों पर जीत हासिल करने की कहानियां सुनाएं, जो युवा लड़कियों को सही करियर विकल्प चुनने के लिए प्रेरित कर सकते हैं.
अन्य उदाहरणों से सीखना
यह स्थिति अन्य आसियान देशों में काफी अलग है. फिलीपींस, थाईलैंड और वियतनाम में, महिलाओं को पैसे कमाने में बराबरी का दर्जा दिया जाता है और समाज में उनकी आर्थिक भागीदारी तुलनात्मक रूप से अधिक है. इसके परिणामस्वरूप, कई कृषि व्यवसाय महिलाओं द्वारा चलाए जाते हैं या उनमें मुख्य निर्णय महिलाएं लेती हैं.
वास्तव में, अधिकांश आसियान देशों में, सभी कॉर्पोरेट ढांचों का निर्माण पुरुषों और महिलाओं, दोनों को ध्यान में रख कर किया गया है. यहां तक कि सर्वाधिक सुदूर के स्थानों में भी महिलाओं के लिए शौचालय जैसी बुनियादी अनिवार्य सुविधाएं उपलब्ध हैं. इसी तरह अधिकांश शहरों में बच्चों की देखभाल करने वाली सेवाएं उपलब्ध हैं. महिलाओं की सुरक्षा पर पूरा ध्यान ध्यान दिया जाता है, जिसके कारण महिलाएं इतनी सशक्त हैं कि सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करके शहर के भीतर और बाहर आसानी से यात्रा कर सकती हैं.
भारत में कृषि और उससे जुड़े अन्य व्यवसाय अपने पड़ोसियों से इस संबंध में आसानी से सीख सकते हैं. अधिक समावेशी वाले वातावरण की उत्पत्ति हमारे सांस्कृतिक ढांचे से होती है और भविष्य के लिए तैयार रहने के उद्देश्य से हमारी कार्य संस्कृति में मज़बूत और लचीली विविधता और समावेशन का होना आवश्यक है।